• पिता की मौत के बाद प्राइवेट से सरकारी स्कूल में करनी पड़ी पढ़ाई, मां ने नरेगा में की मजदूरी
  • बूंदी में दबलाना निवासी राकेश बंजारा ने जेईई एडवांस्ड में हासिल की सफलत

कोटा. पुराणों में शिक्षा का दान सबसे बड़ा माना गया है, क्योंकि शिक्षा मानवता व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है, अपने पैरों पर खड़ा होने के काबिल बनाती है। इसीलिए शिक्षा देने वाले गुरू को ब्रह्मा, विष्णु व महेश के समकक्ष माना गया है। कॅरियर सिटी कोटा और छोटी काशी बूंदी के शिक्षकों ने एक बार फिर इसे चरितार्थ किया है। निर्धन परिवार के प्रतिभावान विद्यार्थी को आगे लाने के लिए यहां शिक्षकों न सिर्फ सही मार्गदर्शन दिया वरन उसकी आर्थिक सहायता भी की।
यह उदाहरण है बूंदी जिले के दबलाना निवासी राकेश सिंह शेखावत बंजारा का। राकेश ने विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला कर खुद को साबित किया और जेईई एडवांस्ड परीक्षा में सफलता हासिल की। राकेश ने 10वीं कक्षा 81 प्रतिशत अंकों एवं 12वीं कक्षा 92.6 प्रतिशत अंकों से उत्त्तीर्ण की है। जेईई एडवांस्ड में कैटेगिरी वाइज 3952 एवं ओवरआल 17922 रैंक प्राप्त की। राकेश अब आईआईटी धनबाद से माइनिंग मशीनरी ब्रांच में इंजीनियरिंग कर रहा है।

पिता की मौत से टूटा परिवार
राकेश ने बताया कि परिवार मूलतः बूंदी जिले के देई कस्बे के नजदीक खानी का देवपुरा ढाणी के निवासी है, यहां 12-15 घर ही थे। कुछ वर्षों पहले तक तो बिजली भी नहीं थी और पढ़ाई के लिए स्कूल भी नहीं थे। पिता शेरसिंह साइकिल से फैरी लगाकर बरतन बेचा करते थे। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य दबलाना आ गए। कुछ पैसे जोड़कर किराए पर एक छोटी सी दुकान ली और बरतन बेचना शुरू किया। यहां प्राइवेट स्कूल में मेरी पढ़ाई हो रही थी। वर्ष 2015 में अचानक हार्टअटैक से उनकी मौत हो गई। इसके बाद पूरा परिवार टूट सा गया। यहां तक कि पेट भरने के लिए भोजन का बंदोबस्त करना भी मुश्किल हो गया। मेरे तीन छोटी बहनें भी हैं।

मां ने की मजदूरी
राकेश ने बताया कि पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी मां कमला बाई पर आ गई। उन्होने शुरुआत में नरेगा में मजदूरी कर जैसे-तैसे परिवार का पेट पाला। आर्थिक स्थिति देखते हुए गांव वालों ने परिवार की मदद की। मां ने घर में ही परचुनी का सामान रखकर बेचना शुरू कर दिया। आठवीं के बाद मैंने प्राइवेट स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूल में प्रवेश लिया और 81 प्रतिशत से 10वीं कक्षा पास की। स्कूल के शिक्षकों ने मदद की और 12वीं में बूंदी के एक निजी स्कूल में एडमिशन कराया। राकेश ने 12वीं 92.6 प्रतिशत अंकों से उत्त्तीर्ण की।

कोटा के साथ से बनी बात
तब राकेश को नहीं पता था कि इंजीनियरिंग करने के लिए कौनसी प्रवेश परीक्षा को पास करना होता है। स्कूल के शिक्षकों ने उसे जेईई एग्जाम के बारे में बताया। राकेश ने बताया कि पढ़ाई का जिम्मा संभाल रहे स्कूल के शिक्षक उसे कोटा लेकर आए। यहां उसकी पारिवारिक स्थिति व प्रतिभा को देखते हुए एक कोचिंग संस्थान ने फीस में 75 प्रतिशत की रियायत मिली। शेष फीस स्कूल के शिक्षकों ने मिलकर जमा कराई। कोटा में भोजन और आवास के शुल्क में भी हाॅस्टल संचालक द्वारा रियायत दी गई। मैंने पूरी कोशिश की और जमकर पढ़ाई की। अब एक अच्छा इंजीनियर बनकर परिवार की स्थिति सुधारना चाहता हूं साथ ही छोटी बहनों की अच्छी पढ़ाई करवाना चाहता हूं।

Leave comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *.