कोटा. काशी जहां धर्म की गंगा बह रही है, दुख दूर होते हैं, जीवन संवरते हैं। ऐसे ही जीवन शिक्षा के क्षेत्र में कोटा भी संवार रहा है। कॅरियर बना रहा है, शायद इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में कोटा को ‘शिक्षा की काशी‘ का अलंकरण दिया है। एक बार फिर इस बात को कोटा ने सिद्ध कर दिया है। इस बार एक ऐसे विद्यार्थी का जीवन संवारा है, जिसका परिवार मूलभूत जरूरतों के लिए ही संघर्ष कर रहा है। बदलाव की यह कहानी है झालावाड़ जिले के मनोहरथाना में पिंडोला पंचायत समिति के मोग्याबेह भीलान गांव के परिवार के लेखराज भील की। करीब 150 घरों के इस गांव से लेखराज का पहला इंजीनियर बनने जा रहा है। पिता मांगीलाल भील एवं मां सरदारी बाई निरक्षर हैं। उन्हें यह तक नहीं पता कि इंजीनियर क्या होता है। दोनों नरेगा में मजदूरी करते हैं। नरेगा मजदूरी के अलावा अन्य दिनों मांगीलाल मजदूरी करते हैं। लेखराज ने जेईई-मेंस (JEE Main) में कैटेगिरी रैंक 10740 प्राप्त की है और एनआईटी से इंजीनियरिंग करने की इच्छा रखता है। लेखराज ने एक निजी कोचिंग से परीक्षा की तैयारी की थी। चयन होने के बाद कोचिंग की ओर से लेखराज का चयन गुदड़ी के लाल स्कीम के तहत किया है, जिसे आगामी चार वर्ष बीटेक करने तक प्रतिमाह स्कालरशिप दी जाएगी।

स्कूल के शिक्षक लेकर आए कोटा
लेखराज पढ़ाई में होशियार था लेकिन उसे अपने कॅरियर को लेकर कुछ पता नहीं था, जेईई भी नहीं जानता था। 8वीं बोर्ड में जिला मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त किया, वर्ष 2017 में राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय खाताखेड़ी में पढ़ते हुए 93.83 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। शिक्षकों ने परिजनों से बात की तो उन्होंने पैसे नहीं होने की बात कही। ऐसे में कुछ टीचर्स मिलकर लेखराज को कोटा लाए और यहां एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में मिले। यहां निदेशक से बातचीत के बाद लेखराज को निशुल्क प्रवेश दिया गया। साथ-साथ आवास व भोजन की व्यवस्था भी निशुल्क की गई। इस बात पर शिक्षकों ने कहा कि लेखराज की प्रतिभा को देखते हुए यह प्रयास किया था, जिसका सम्मान कोचिंग सेंटर द्वारा रखा गया। लेखराज ने दो साल तक कोटा में रहकर पढ़ाई की। यहां चार महीने पढ़ने के बाद उसे जानकारी हुई कि वो जेईई की तैयारी कर रहा है और इससे इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन मिलेगा।

12 किलोमीटर पैदल आता-जाता था
लेखराज की पढ़ाई में रूचि थी। 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव से 6 किलोमीटर दूर स्थित सरकारी स्कूल में जाकर की। रोजाना 12 किलोमीटर आना-जाना पड़ता था। स्कूल में गणित व विज्ञान विषय के शिक्षक उपलब्ध नहीं थे। फिर भी लेखराज ने खुद पढ़ाई की और 93.83 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। गांव में मात्र 150 घरों की आदिवासी भीलों की बस्ती है। बिजली भी बहुत कम आती है। कच्चा मकान है। दो साल पहले सरकारी योजना के तहत घर में शौचालय बनवाया है। गांव के अधिकांश युवा मजदूरी एवं अन्य काम करते हैं। लेखराज के पिता को अभी तक यह नहीं पता कि इंजीनियर क्या होता है और उनके बेटे को किस परीक्षा में सफलता मिली है। इंजीनियर बनकर आने के बाद लेखराज परिवार की स्थिति में सुधार लाना चाहता है। लेखराज सहित चार भाई-बहिन है। दो की शादी हो चुकी है।


साब, मुझे तो पता ही नहीं, ये क्या हो रहा है
लेखराज के पिता मांगीलाल ने कहा कि मैं और मेरी पत्नी दिहाड़ी मजदूर हैं। घर की स्थिति इतनी खराब है कि बच्चों को पढ़ाने के बारे में सोच भी नहीं सकता। जैसे-तैसे परिवार का पेट पाल रहा हूं। लेखराज पढ़ाई में होशियार था लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि उसे कोटा भेज सकूं। स्कूल के शिक्षकों ने मदद कर उसे कोटा में भेजा। मैंने सुना है उसने कोई परीक्षा पास कर ली। शायद, अब मेरे परिवार की हालत कुछ सुधर जाए।

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